मेरा दर्शन


आपके ह्रदय सरोवर में जिन शुभ या अशुभ विचारो का अथवा भद्र और अभद्र भावनाओ का प्रवाह चलता है, वही अप्रत्यक्ष रूप से हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करता है| हमारा एक एक विचार, हमारी एक एक आकांक्षा, एक एक कल्पना वे दृढ आधारशिलाए है, जो धीरे-धीरे आपके गुप्त मन को बनाया कराती है| अपने को तुच्छ और नगण्य समझने वाला व्यक्ति संसार में कभी कुछ नहीं कर सकता|


मनोविज्ञान का यह सिद्धांत है कि चिंतन से उसी भाव या गुण की वृद्धि होती है, जिसके विषय में आप निरंतर सोचते-विचरते है| यदि हम जीवन के कष्टप्रद, कटु, त्रुटिपूर्ण अनुभव या अपनी निर्बलताओ में विचरण करते रहेगे, तो अपने ही दोषों को ही वृद्धि करेगे| मनुष्य स्वाभाव, गुण और चरित्र को जब जैसे चाहे, आत्म बल से नए मार्गो में मोड़ सकता है| जिस प्रकार अपने को दीन-हीन समझाना आत्महत्या के सामान है, उसी प्रकार दुसरो को तुच्छता का भ्रम करना पाप है| इन बुरे संकेतो से सुकुमार हृदयों या अल्पव्यस्क किशोर-किशोरियों  के मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है| मानसिक दृष्टि से अपने हितैषी बनिए| 


अपना स्वमूल्यांकन अवश्य करे| आप अपनी क्षमताओ का स्वमूल्यांकन करे और अपने उद्देश्यों के विषय में विचार करे|यही विचार जो आपके मन में चलता है, अप्रत्यक्ष तौर पर आपके व्यक्तित्व का निर्माण करेगी|


शक्तिशाली बने| शक्ति ऐसा तत्व है, जो प्रत्येक क्षेत्र में अपना अद्भुत प्रकाश दिखाता है और संसार को चमत्कृत कर देता है| शक्ति के बिना शिव का भी स्पंदन नहीं होता है|


मनुष्य स्वय ही इस अलक्षित वातावरण का स्रष्टा है| आपके विचार जितने शुभ, सात्विक, आशावादी होते चलेगे और हितैषी भावनाओ से जितने स्निग्ध बनेगे, उतना ही उतम आपका संसार होगा| आपका अधिक बल क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष और दुसरो से प्रतिशोध लेने की कटु भावनाओ में क्षीण होती है| हमें अपने वास्तविक स्वरुप को समझाना बहुत आवश्यक है| सफल जीवन व्यतीत करने के लिए तीन तत्वों का अध्धयन करना अति आवश्यक है| पहला, इश्वर को प्रत्यक्ष करने के लिए उसे धर्म ग्रन्थ और अध्यात्म की खोज करनी चाहिए| दूसरा, अपने आप को पहचानने के लिए उसे अपनी आत्मा, मनोवृति, स्वभाव और विचारो का निरीक्षण करना चाहिए| तीसरा, अपने निकटवर्ती व्यक्तिओ से स्नेह करने के लिए समभाव उत्पन्न करने वाली पुस्तकों का पठन पाठन करना चाहिए|


अपने वास्तविक स्वरुप की खोज करते समय हमें पूर्णरूप से भय, क्रोध, तिरस्कार, शंका तथा अन्य दुविधामय मानसिक स्थितियों का त्याग करना चाहिए| हम अकेले है, पर शक्तिहीन नहीं| हमें स्वय अपना उद्धार करना चाहिए| निंद्रा, तन्द्रा,भय, क्रोध, आलस्य और दीर्धसूत्रता - ये चरित्र के छ: दोष उन्नति के बाधक है| अत: उन्नति चाहनेवाले पुरुष को इनका सर्वथा त्याग करना चाहिए|

अपने अभावो की बात न सोचिये और अबाध गति से आत्मविश्वास धारण किये बढ़ते चले| हमें स्वय अपना उद्धार करना चाहिए| निंद्रा, तन्द्रा,भय, क्रोध, आलस्य और दीर्धसूत्रता - ये चरित्र के छ: दोष उन्नति के बाधक है| अत: उन्नति चाहनेवाले पुरुष को इनका सर्वथा त्याग करना चाहिए| आपके जीवन में अतृप्ति, आभाव एवं असंतोष उत्पन्न होने का एक कारण यह है कि आप अपनी स्थिति और जीवन को, अपने गुण या आभावो को दुसरे से, विशेषत: अपने से अच्छी सामाजिक और आर्थिक स्थिति एवं अधिक योग्यतावाले अथवा हैसियत में उच्च पद पानेवाले से तुलना करते है|  अवैध काम, क्रोध, लोभ, भय, विवाद, दंभ, अभिमान, मद, डाह, आलस्य और प्रमाद इन बारह तरह के दोषों से बचे रहने का पर्यत्न करते रहना चाहिए|


यौवन मनुष्य की परिपक्वता का समय है| मनुष्य की सब शक्तिया उभरी रहती है| वासना एक शक्ति है, जिसका दुरूपयोग मनुष्य को पशुकोटी में ला पटकता है| " सिंह की तरह बलवान बनो, किन्तु शक्ति का उपयोग पशुओं की तरह न करो|"


मनुष्य को संसार में महता प्रदान करनेवाला पुरुषार्थ है| पुरुषार्थ की वृद्धि पर ही मनुष्य की उन्नति संभव है| पुरुषार्थ का निर्माण कई मानसिक तत्वों के सम्मिश्रण से होता है| (१). साहस (२). दृढ़ता (३). महानता की महत्वकांक्षा | मनुष्य को प्रतिकूलता से घबराये बिना कार्य करते रहना चाहिए| ग्राहय शक्ति की वृद्धि करना नितांत आवश्यक है| मध्यम मार्ग ही श्रेष्ठतम है| अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और स्थिति के अनुजुल ही रहन सहन और महत्त्व का प्रदर्शन करना चाहिए| आपका स्वभाव, आपकी अच्छी आदते , आपका मानसिक संतुलन, आपकी मन: स्थिति ऐसी दिव्य बाते है, जो आपके वश में है| अतएव, यदि संसार में सुख और शांति चाहते है तो जो आपके वश की बाते है, उन्ही को विकसित कीजिये और जो आपके वश में नहीं है, उन पर चिंतन या पश्चाताप मत कीजिये| स्वयं अपने मश्तिषक का स्वामी बनिए| संसार के व्यक्तियों को अपनी राह जाने दे|  आपकी यह प्रवृति कि, दुसरो को अपना आलोचक समझना अथवा ईर्ष्यालु समझना - स्वयं आपकी आंतरिक दुर्बलता के चिन्ह है| मित्रभाव रखने से मन में शांति बनी रहती है और सामाजिक संबंध मधुर बनते है|  वर्तमान का सदुपयोग करे एवं साहसपूर्ण जीवन व्यतीत करे| यदि हम दूसरों कि बातो सहन करना सीख ले, अपने आपको संयमित कर लिया करे, तो अनेक स्थानों पर विजयी हो सकते है| अति कि आदत एक प्रकार का पागलपन है, जो हमें निपट स्वार्थी बना देती है और आत्मीयता का दायरा संकुचित कर देती है| अपने स्वार्थो के सामने हमें दूसरों की न्यायपूर्ण आवश्यकताए भी नहीं दिखती है|


सौन्दर्य के लिए मन में यौवन, उत्साह, प्रफुल्लता, प्रेम और सहानुभूति अदि के उदार विचार प्रचुरता से आने दीजिये| सच्ची शिक्षा वह है, जो मनुष्य को शारीरिक एवं आत्मिक सौन्दर्य की चरम अनुभूति करा सके| जिस व्यक्ति ने सौन्दर्य की सर्वोच्च साधना की है, वही सच्चे अर्थो में शिक्षित है| वही पूर्ण परिपक्व जीवन है, जो सौन्दर्य एवं विवेक के सामंजस्य से युक्त है, जिसमे सौन्दर्य के प्रेम के साथ साथ दूसरों को भी सौंदर्यानुभूति करने की सद्भावना हो|

हमारा आधारभूत सत्य यह होना चाहिए कि हम अपने जीवन को प्यार करना, उसमे अधिक से अधिक सफलता, प्रतिष्ठा एवं गौरव प्राप्त करने का उद्देश्य अपने सामने रखे| हमें ऐसे सभी संस्कारो से मुक्त रहने का प्रयास करते रहना चाहिए जी हमारे व्यक्तित्व पर अनुचित प्रभाव डाल रहे हो| प्रत्येक व्यक्ति के पास कुछ ऐसी गुप्त बातें रहस्यों के रूप में होती है, जिसकी गोपनीयता पर उसकी प्रतिष्टा, साख या सामाजिक स्थिति निर्भर रहती है| इसलिए अपनी गुप्त बाते हर किसी से न कहे| गोपनीयता में आप में दुसरो को आकर्षण प्रतीत होता है|

मानव स्वभाव को बदला जा सकता है| प्रत्येक व्यक्ति अगर अभ्यास करे, तो अपनी बुरी आदते छोड़ कर अच्छी आध्यात्मिक आदतें धारण कर सकता है| प्रेम, सहानुभूति, मैत्रीभाव इत्यादि आदतों का विकास निरंतर अभ्यास से होता है| आदते हमारा स्वभाव निर्माण करती है| 


जो शक्ति पृथ्वी को धारण किये है, वह क्रियाशीलता है| परिश्रम करने की मूल वृति किसी न किसी विशेष उद्देश्य को पाने के के लिए प्रयत्न करना है| जीवन एक संग्राम है| यहाँ वही विजयी होता है, जो सीना तान कर आफतों का मुकाबिला कर सकता है| क्रियाशीलता यौवन को स्थिर रखती है| सक्रियता में जीवन जाग्रति के लक्षण है| जीवन छोटी-मोटी बातों में चिंतित रहने के लिए नहीं है| जीवन महान है| यह साधारण बातो में विनष्ट होने के लिए कदापि नहीं है| 


हमें मानसिक संतुलन धारण करना चाहिए| ध्यान का अभ्यास करने से मानसिक संतुलन बना रहता है| इसके लिए दीर्घ कालीन सतत अभ्यास की आवश्यकता होती है| " मै निर्विध्न आगे बढ सकता हु| शक्ति और सामर्थ्य मुझमे प्रचुरता से विद्यमान है| मै साधारण कार्यो में अपनी मौलिकता प्रकट करता हूँ और पुरे दिल-मन से अपना कार्य करता हूँ| सफलता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है|" ऐसा मनन करना चाहिए|