Thursday, September 1, 2011

तथ्य

 निर्बल, निस्तेज, आंसू की बूंद सा
 दुलकता हुआ, क्या यही तथ्य है?
जीवन की मार्मिक छवि,
क्या अब किताबो में कैद रहेगी?
आकाश सी फैली हुई मेरी बाहें,
समुंदर सी गहरी मेरी भावनाए,
समेटना चाहती है अपने आगोश में,
उपवन, चितवन, करुणा, आकर्षण,
मौलिकता जो जीवन में है|
गंभीर, शांत, शीतल मस्तिष्क,
गहरी काली अँधेरी रातों को 
अपना सर्वस्व कब तक मानेगी?
निहारिका की तेज पुंज,
अरुणोदय का प्रकाश,
हरीतिमा की आशा में,
निर्झर जीवन कितने बसंत देखेगा|
बर्फ के मानिंद चमकते चेहरे,
छुते ही पानी-पानी हो जाते है,
पत्थर की मूर्तियों से कब तक,
दया के भीख मांगे जायेगे?
प्रबल अभिव्यक्तियों के आभाव में,
निरर्थक प्रतीत होता जीवन,
और सर्वस्व को त्याग कर,
प्रेम प्रणय का अनुमोदन,
जीवन को पूर्णता नहीं दे पाती है| 
निष्ठुर जगत मन का नहीं,
अभिव्यक्तियों की भाषा समझता है,
मगर अव्यक्त को अभिव्यक्त करना,
कितना कठिन, कितना दुरह है|
                                              मिथिलेश राय

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