Tuesday, May 3, 2011

एक छोटी कविता


ये खुशियों का पल है, ये मस्ती का मौसम,
कि आजा अधुरा है, अपना मिलन|
वो गीतों की लड़ियाँ, वो मासूम चेहरा,
वो पायल की झनझन, वो माथे पे सेहरा,
कभी हम भी मिले थे सपने में साजन,
कि आजा अधुरा है, अपना मिलन|
जब डोली में बैठी दुल्हन बनी थी,
वो बालों में गजरा, माथें बिंदिया सजी थी,
वो कयामत थी या तेरी तिरछी नजर,
कि आजा अधुरा है, अपना मिलन|
वो मंजिल जिसके हमने सपने बुने थे,
वो धड़कन जिसे हमने हर पल सुने थे,
मुझे मिल गया है, महका है आंगन,
कि आजा अधुरा है, अपना मिलन|
                                      मिथिलेश राय 

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