मेरी जिन्दगी इतनी सुनी क्यू है,
किसी विधवा की मागं की तरह।
कभी रगं भी भरना चाहू तो,
अपने आप से लडना पडता है,
कैसे भुला दु, कभी रगं भी भरे थे,
आज उजड. गया, सूना पड. गया।
मेरे अल्फाजं इतने कड्वे क्यू,
नीम के पते की तरह,
हमको पता है, यही एक इलाज है,
फिर भी मन स्वीकार नही करता,
मन सरलता ढुढता है, मगर,
कहा से ले आऊ वो मीठापन,
मेरा अस्तितव इतना छिछला क्यु,
नदी के किनारों की तरह,
हर लहर मुझसे कुछ छिन लेती है,
और मै खोकर भी वही,
खडा रहता हु बेबस, बेसहारा
मेरे एहसासों मे इतनी घुटन क्यु,
काई जमी हुई जमीन की तरह,
हर नजर फिसल जाती है,
कोई नही ठहरता, बस थोडी सी दर्द की
परत उघाड देता है,
ठहरी हुई है जिन्दगी, बह रहे है आसुं,
क्या मेरा कसुर सिर्फ़ इतना नही,
की मैने किसी से बेपनाह मुहब्बत की थी।
मिथिलेश राय
किसी विधवा की मागं की तरह।
कभी रगं भी भरना चाहू तो,
अपने आप से लडना पडता है,
कैसे भुला दु, कभी रगं भी भरे थे,
आज उजड. गया, सूना पड. गया।
मेरे अल्फाजं इतने कड्वे क्यू,
नीम के पते की तरह,
हमको पता है, यही एक इलाज है,
फिर भी मन स्वीकार नही करता,
मन सरलता ढुढता है, मगर,
कहा से ले आऊ वो मीठापन,
मेरा अस्तितव इतना छिछला क्यु,
नदी के किनारों की तरह,
हर लहर मुझसे कुछ छिन लेती है,
और मै खोकर भी वही,
खडा रहता हु बेबस, बेसहारा
मेरे एहसासों मे इतनी घुटन क्यु,
काई जमी हुई जमीन की तरह,
हर नजर फिसल जाती है,
कोई नही ठहरता, बस थोडी सी दर्द की
परत उघाड देता है,
ठहरी हुई है जिन्दगी, बह रहे है आसुं,
क्या मेरा कसुर सिर्फ़ इतना नही,
की मैने किसी से बेपनाह मुहब्बत की थी।
मिथिलेश राय
ati ati ati sundar. subah subah dil behal gaya!
ReplyDeletethankxxxxxxxx for ur comment
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